Tuesday 22 November 2011

"याद तुम्हारी "


 गमो के पहाडो तले
असंख्य फूलो के जंगलो में
अतीत की गुफामें
कहीं छिपकर  
सिमटकर
बैठी है, औ प्रिय!
याद तुम्हारी
 समाजकी हिंसक वृति से
भयभीत ( आतंकित) बेचारी!
तनिक जाक करा कभी कभी दूरसे ही
मुजसे प्यार कर लेती है
नजरके  मिस याद तुम्हारी.


राधा का गीत


मुझे दोष मत देना, मोहन,
   मुज पर रोष  न करना !
दिवस जलाता , निशा रुलाती,
  मन की पीड़ा दिशा भुलाती
कितनी दूर सपन है तेरे
कितनी तपन मुझे जुलसाती
चलती हू   , पर  नहीं थकाना
 जलती हू पर होश न हरना     
मोहन,
   मुझ पर रोष  न करना !
इसी तपन ने आखे खोली
 इसी जलन ने भर दी जोली
जब तुम बोले मौन रही मै
 जब मौन हुए तुम , मै बोली
सहना सबसे कठीन मौन को
 कहना है , खामोश न करना !
मोहन,
   मुझ पर रोष  न करना !



Wednesday 9 November 2011

"दहेज दोषावली"

(३)

१)दहेज सु भलो सर्प बिस प्राण जाय इक बार..
दहेज बिस सुं मुइ कन्या जीते जी कइ बार..


२)वा नीचन तें नीच है, जो दहेज मांगन जाय.
उनते भी वा नीच है जो कन्या वासो परणाय..


३)धन मांगै निरस भये,रस बिनु उख मै काठ
काथ सु कन्या ब्याहदी, सुखी जीवन-बाट..


४)धिक धिक ! दहेजी दानवा! कितनी बलि तू खाय.
सौ सम रहिं न बिटिया सब कि तोहर भूख मिटाय


५) पोथा पढि पढि वर मुआ आयी न बुध्धि तोय
दुल्हन लाय दहेज बिनु सौ वर उत्त्म होय.