Sunday 23 October 2011

"दहेज दोषावली" (2)

१) वे लोगन न सराहिए दहेज मांगन आय

प्रानन प्रीत पिछानिए, कन्या न आगि समाय....


२)फिरि फिरि आवैं धन घटै सो भिखारी जान.

एसन मंगत सु ब्याहिके कन्या गवाइ जान


३)बेटी दहेज न दीजिये ग्यान दिजै भरपूर

जीवन उजलै ग्यान तें, दहेज दहन तें दूर


४)चिता दहती निर्जीव को दहेज सजीउ जलाय.

मुरख हैं मा बाप वे दुषण यो उक साय.


५)इक नारी होवै सती निकला जुलूस अनेक.

अनेक जलीं दहेज तें जुलूस न देख्यौं एक..

Tuesday 18 October 2011

"दहेज दोषावली" (१)

१) बेटी ब्याहन जो चले दहेज़ न दिजौ कोय .
दिन दिन अधम दहेजको कीड़ो विकसित होय.

२)दहेज़ -दानव बहुरूपी ,विध विध रूप सजाय .

फ्लेट,कार,बिदेश-व्यय, बेटी देत फसाय

३)दहेज़-दैत्य बसे जहां, बेटी तहा न देय.
सुता-धन दोऊ खोयके बिपदा मोल न लेय..

४)दे दहेज़ मरी मरी गए ,दुष्ट न भरियो पेट .

ऐसे निठुर राखसका करै अगिन के भेंट

५)वे मुआ नरकमा जाय , जेई लिनहो दहेज़.
मुफ्त्खोरके कुल माहि बेटी कभी न भेज..

Friday 14 October 2011

हर सिंगार

हर  सिंगार पुष्प वे पुष्प होते हैं जो शिव जी को बड़े प्रिय हैं. छोटे  छोटे इन पुष्पों की कोमल डाली सिंदूर रंग की होती हैं और फुल   की चार या पांच पत्तिया  शुभ्र रंग की होती है. संध्या होते ही ये खिलना शुरू करते हैं और रात भर में  खिल  कर  मधुर सौरभ बिखेरते हैं और प्रांत; होते ही धरती पर  न्योछावर हो जाते हैं.धरती पर बिखरे हुए पारिजात पुष्प पार्वती को प्रिय लगते हैं.
 मेरी कविताएं भी सदा रात को ही खिला करती हैं, प्रांत; होते ही 'शुभ्र धरती' पर, कागज़ पर  बिखरी मिला जाती हैं
 मन के भीतर  समय समय पर  उठने वाले तरह तरह के भाव काव्य स्वरूप 'हर सिंगार 'से सौरभ बिखेरते रहते हैं..