Friday, 2 December 2011

"पसीना बरसे सुरजका "


यह सूरज -
धधकता -
विशाल नभमे
दिन भर,
पूरब से पश्चिम तक
चल चलकर
ताप तपकर
थक जाता है
सूरज -
बादलके रुमाल से
पसीना अपना
तर बतर
पोछ रहा है
सूरज
फिर निचोड़ देता है पानी
रुमाल ;
बरस जाता है पानी
झरमर  झरमर !
जल मीठा बनाकर
हरियाली रंगा देता है
इधर उधर
-
प्रसन्नता से
लहलहा उठाती है धरा
पसीने की कमाई
खाकर
आने
पसीने से भींगे रुमाल 
शरद मे झटककर
सुखाये
रात भर
और तह कर
रख देता है उनको
दिन के उजाले में
सूरज
फिर
संगमरी चांदनी की
माया में
राते बीता कर
हों जाता है
शीतल ,
निर्मल
सूरज
और तब हवाओं में
बिखर बिखर जाती है
पुष्पों की
पराग - राज
सिहर सिहर ...!
किरनोकी बाहों से
आहिस्ते छु लेता है सूरज
सागर की चंचल
लहर लहर !

Thursday, 1 December 2011

यह नारी..


नदी की उफनती बाढ़मे  
जलावर्त के ठेठ भीतर के भवरमे - 
घुमराते अंधेरो में- 
घर-गृहस्थी- 
बंधी  -संबंधी 
  रश्मो -रिवाज़ों 
और  
पति-पुत्रो में खूपी हुई
कुल बुलाती देखी मैंने  नारी ! 
संवेदना शीलताके फेविकोलसे चिपकाये 
लगावो के  जोड़ों को वह  काट नहीं पाती है कभी भी- 
क्यों की वह 'आरी' नहीं हो पाती है- 
संधि है यह ;नारी'


Tuesday, 22 November 2011

"याद तुम्हारी "


 गमो के पहाडो तले
असंख्य फूलो के जंगलो में
अतीत की गुफामें
कहीं छिपकर  
सिमटकर
बैठी है, औ प्रिय!
याद तुम्हारी
 समाजकी हिंसक वृति से
भयभीत ( आतंकित) बेचारी!
तनिक जाक करा कभी कभी दूरसे ही
मुजसे प्यार कर लेती है
नजरके  मिस याद तुम्हारी.


राधा का गीत


मुझे दोष मत देना, मोहन,
   मुज पर रोष  न करना !
दिवस जलाता , निशा रुलाती,
  मन की पीड़ा दिशा भुलाती
कितनी दूर सपन है तेरे
कितनी तपन मुझे जुलसाती
चलती हू   , पर  नहीं थकाना
 जलती हू पर होश न हरना     
मोहन,
   मुझ पर रोष  न करना !
इसी तपन ने आखे खोली
 इसी जलन ने भर दी जोली
जब तुम बोले मौन रही मै
 जब मौन हुए तुम , मै बोली
सहना सबसे कठीन मौन को
 कहना है , खामोश न करना !
मोहन,
   मुझ पर रोष  न करना !



Wednesday, 9 November 2011

"दहेज दोषावली"

(३)

१)दहेज सु भलो सर्प बिस प्राण जाय इक बार..
दहेज बिस सुं मुइ कन्या जीते जी कइ बार..


२)वा नीचन तें नीच है, जो दहेज मांगन जाय.
उनते भी वा नीच है जो कन्या वासो परणाय..


३)धन मांगै निरस भये,रस बिनु उख मै काठ
काथ सु कन्या ब्याहदी, सुखी जीवन-बाट..


४)धिक धिक ! दहेजी दानवा! कितनी बलि तू खाय.
सौ सम रहिं न बिटिया सब कि तोहर भूख मिटाय


५) पोथा पढि पढि वर मुआ आयी न बुध्धि तोय
दुल्हन लाय दहेज बिनु सौ वर उत्त्म होय.


Sunday, 23 October 2011

"दहेज दोषावली" (2)

१) वे लोगन न सराहिए दहेज मांगन आय

प्रानन प्रीत पिछानिए, कन्या न आगि समाय....


२)फिरि फिरि आवैं धन घटै सो भिखारी जान.

एसन मंगत सु ब्याहिके कन्या गवाइ जान


३)बेटी दहेज न दीजिये ग्यान दिजै भरपूर

जीवन उजलै ग्यान तें, दहेज दहन तें दूर


४)चिता दहती निर्जीव को दहेज सजीउ जलाय.

मुरख हैं मा बाप वे दुषण यो उक साय.


५)इक नारी होवै सती निकला जुलूस अनेक.

अनेक जलीं दहेज तें जुलूस न देख्यौं एक..

Tuesday, 18 October 2011

"दहेज दोषावली" (१)

१) बेटी ब्याहन जो चले दहेज़ न दिजौ कोय .
दिन दिन अधम दहेजको कीड़ो विकसित होय.

२)दहेज़ -दानव बहुरूपी ,विध विध रूप सजाय .

फ्लेट,कार,बिदेश-व्यय, बेटी देत फसाय

३)दहेज़-दैत्य बसे जहां, बेटी तहा न देय.
सुता-धन दोऊ खोयके बिपदा मोल न लेय..

४)दे दहेज़ मरी मरी गए ,दुष्ट न भरियो पेट .

ऐसे निठुर राखसका करै अगिन के भेंट

५)वे मुआ नरकमा जाय , जेई लिनहो दहेज़.
मुफ्त्खोरके कुल माहि बेटी कभी न भेज..