नदी की उफनती बाढ़मे
जलावर्त के ठेठ भीतर के भवरमे -
घुमराते अंधेरो में-
घर-गृहस्थी-
बंधी -संबंधी
रश्मो -रिवाज़ों
और
पति-पुत्रो में खूपी हुई
कुल बुलाती देखी मैंने नारी !
संवेदना शीलताके फेविकोलसे चिपकाये
लगावो के जोड़ों को वह काट नहीं पाती है कभी भी-
क्यों की वह 'आरी' नहीं हो पाती है-
संधि है यह ;नारी'
जलावर्त के ठेठ भीतर के भवरमे -
घुमराते अंधेरो में-
घर-गृहस्थी-
बंधी -संबंधी
रश्मो -रिवाज़ों
और
पति-पुत्रो में खूपी हुई
कुल बुलाती देखी मैंने नारी !
संवेदना शीलताके फेविकोलसे चिपकाये
लगावो के जोड़ों को वह काट नहीं पाती है कभी भी-
क्यों की वह 'आरी' नहीं हो पाती है-
संधि है यह ;नारी'
jivan ka aarambh sutra hai naari
ReplyDeleteपति-पुत्रो में खूपी हुई
ReplyDeleteकुल बुलाती देखी मैंने नारी !
संवेदना शीलताके फेविकोलसे चिपकाये
लगावो के जोड़ों को वह काट नहीं पाती है कभी भी-
क्यों की वह 'आरी' नहीं हो पाती है-
संधि है यह ;नारी'
bahut sunder panktiyan... or yeh satya bhi hai.