Thursday 1 December 2011

यह नारी..


नदी की उफनती बाढ़मे  
जलावर्त के ठेठ भीतर के भवरमे - 
घुमराते अंधेरो में- 
घर-गृहस्थी- 
बंधी  -संबंधी 
  रश्मो -रिवाज़ों 
और  
पति-पुत्रो में खूपी हुई
कुल बुलाती देखी मैंने  नारी ! 
संवेदना शीलताके फेविकोलसे चिपकाये 
लगावो के  जोड़ों को वह  काट नहीं पाती है कभी भी- 
क्यों की वह 'आरी' नहीं हो पाती है- 
संधि है यह ;नारी'


2 comments:

  1. पति-पुत्रो में खूपी हुई
    कुल बुलाती देखी मैंने नारी !
    संवेदना शीलताके फेविकोलसे चिपकाये
    लगावो के जोड़ों को वह काट नहीं पाती है कभी भी-
    क्यों की वह 'आरी' नहीं हो पाती है-
    संधि है यह ;नारी'
    bahut sunder panktiyan... or yeh satya bhi hai.

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